Wednesday, June 9, 2010

मेरे जितने क़हक़हे थे आंसुओं तक आ गये

फेर कर मुंह आप मेरे सामने से क्या गये

मेरे जितने क़हक़हे थे आंसुओं तक आ गये

ये इशारा है किसी आते हुये तूफ़ान का
आज वो हम को हमारे सारे ख़त लौटा गये

अब बहार आये न आये, क्या ग़रज़ इस से हमें
मुस्कुराहट से हज़ारों फूल वो बरसा गये

जा रहे थे हम तो अपनी धुन में मंज़िल की तरफ़
ले के तुम नज़रानए-दिल रास्ते में आ गये

आओ हम सब मिल के भेजें उन शहीदों पर सलाम
जो वतन के वासिते मैदान में काम आ गये

हम को भी खिलना था इक दिन बांटनी थीं ख़ुशबुयें
हम हवाए-गर्मे-दुन्या से मगर मुर्झा गये

वो समंदर था, बुझाता था वो सहराओं की प्यास
पास उस के कितने तश्ना-लब१ गये, सहरा गये

कुछ तो उन में ख़ूबियां थीं, कुछ तो उन में वस्फ़२ थे
ज़िंदगी में अपने क़द से लोग जो ऊंचा गये

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

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