Wednesday, August 11, 2010

तह्ज़ीब हो न जाये नीलाम बस्तियों में

कल तक था नाम जिनका बदनाम बस्तियों में
चलते हैं आज उन के एह्काम बस्तियों में

हर सू मचा हुआ है कुहराम बस्तियों में
तह्ज़ीब हो न जाये नीलाम बस्तियों में

घोला था ज़हर किस ने कोई न जानता था
तेगे़४ खिंची हुई थीं इक शाम बस्तियों में

जिन के नफ़स नफ़स में तख्ऱीब६ बस रही है
ऐसे हलाकुओं का क्या काम बस्तियों में

कोई न हो शनासा कोई न जानता हो
आओ कि जा बसें हम बे-नाम बस्तियों में

सूने पड़े हैं मन्दिर, वीरान मस्जिदें हैं
धूमें मची हैं क्या क्या बदनाम बस्तियों में

सब शोरिशें हों 'रहबर` नापैद बस्तियों से
अमन-ओ-अमां का फैले पैगा़म बस्तियों में




श्री राजेंद्र नाथ रहबर

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