Friday, June 25, 2010

ख़ुद बतायेगा नक्श़े-क़दम रास्ता

तय करें मिल के हम तुम ब`हम रास्ता
बढ़ के ले गा हमारे क़दम रास्ता

कौन गुज़रा है आहों में डूबा हुआ
हो गया किस के अश्कों से नम रास्ता

लम्से-अव्वल तेरे पांव का जब मिला
हो गया और भी मुहतरम रास्ता

राहे-उल्फ़त के पुर-जोश राही हैं हम
चूमता है हमारे क़दम रास्ता

ख़ुद-बख़ुद आयेंगी मंज़िलें सामने
ख़ुद बतायेगा नक्श़े-क़दम रास्ता

हम भी पहुँचें सरे-मंज़िले-सरख़ुशी
दे अगर हम को शामे-अलम रास्ता

ये सफ़र, ये हसीं शाम ये घाटियां
कितना दिलकश है पुर-पेचो-ख़म रास्ता

क्यों न 'रहबर` चलूं मंज़िलों मंज़िलों
मेरी तक्द़ीर में है रक़म रास्ता


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

2 comments:

  1. मोहतरम श्री राजेंद्र नाथ 'रहबर'साहब तक मेरा सलाम पहुंचे !
    आपको रिसालों में बहुत दफ़ा पढ़ा है , आज ब्लॉग देख कर जो ख़ुशी और मसर्रत है , बयान नहीं की जा सकती ।
    आपकी ग़ज़लियात के बारे में कुछ भी कहना आफ़्ताब को चराग़ दिखाने से ज़ियादः कुछ भी न होगा ।

    आपको भी मेरे ब्लॉग शस्वरं पर आमंत्रण है…
    http://shabdswarrang.blogspot.com
    मैंने अभी अपनी जो ग़ज़ल आए न बाबूजी गा' कर लगाई हुई है उस पर आपके कमेंट की गुज़ारिश है ।

    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

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  2. Respected Rajendra ji

    This blog is not maintained by Sh. Rehbar. I'll try to convey your message to Sh. Rehbar

    Yous

    Ravi Kant Anmol

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