तय करें मिल के हम तुम ब`हम रास्ता
बढ़ के ले गा हमारे क़दम रास्ता
कौन गुज़रा है आहों में डूबा हुआ
हो गया किस के अश्कों से नम रास्ता
लम्से-अव्वल तेरे पांव का जब मिला
हो गया और भी मुहतरम रास्ता
राहे-उल्फ़त के पुर-जोश राही हैं हम
चूमता है हमारे क़दम रास्ता
ख़ुद-बख़ुद आयेंगी मंज़िलें सामने
ख़ुद बतायेगा नक्श़े-क़दम रास्ता
हम भी पहुँचें सरे-मंज़िले-सरख़ुशी
दे अगर हम को शामे-अलम रास्ता
ये सफ़र, ये हसीं शाम ये घाटियां
कितना दिलकश है पुर-पेचो-ख़म रास्ता
क्यों न 'रहबर` चलूं मंज़िलों मंज़िलों
मेरी तक्द़ीर में है रक़म रास्ता
श्री राजेंद्र नाथ रहबर
मोहतरम श्री राजेंद्र नाथ 'रहबर'साहब तक मेरा सलाम पहुंचे !
ReplyDeleteआपको रिसालों में बहुत दफ़ा पढ़ा है , आज ब्लॉग देख कर जो ख़ुशी और मसर्रत है , बयान नहीं की जा सकती ।
आपकी ग़ज़लियात के बारे में कुछ भी कहना आफ़्ताब को चराग़ दिखाने से ज़ियादः कुछ भी न होगा ।
आपको भी मेरे ब्लॉग शस्वरं पर आमंत्रण है…
http://shabdswarrang.blogspot.com
मैंने अभी अपनी जो ग़ज़ल आए न बाबूजी गा' कर लगाई हुई है उस पर आपके कमेंट की गुज़ारिश है ।
- राजेन्द्र स्वर्णकार
शस्वरं
Respected Rajendra ji
ReplyDeleteThis blog is not maintained by Sh. Rehbar. I'll try to convey your message to Sh. Rehbar
Yous
Ravi Kant Anmol