तुम जन्नते कश्मीर हो तुम ताज महल हो
'जगजीत` की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़ल हो
हर पल जो गुज़रता है वो लाता है तिरी याद
जो साथ तुझे लाये कोई ऐसा भी पल हो
होते हैं सफल लोग मुहब्बत में हज़ारों
ऐ काश कभी अपनी मुहब्बत भी सफल हो
उलझे ही चला जाता है उस ज़ुल्फ़ की मानिन्द
ऐ उक़दा-ए-दुशवारे मुहब्बत२ कभी हल हो
लौटी है नज़र आज तो मायूस हमारी
अल्लह करे दीदार तुम्हारा हमें कल हो
मिल जाओ किसी मोड़ पे इक रोज़ अचानक
गलियों में हमारा ये भटकना भी सफल हो
श्री राजेंद्र नाथ रहबर
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