Wednesday, August 11, 2010

तह्ज़ीब हो न जाये नीलाम बस्तियों में

कल तक था नाम जिनका बदनाम बस्तियों में
चलते हैं आज उन के एह्काम बस्तियों में

हर सू मचा हुआ है कुहराम बस्तियों में
तह्ज़ीब हो न जाये नीलाम बस्तियों में

घोला था ज़हर किस ने कोई न जानता था
तेगे़४ खिंची हुई थीं इक शाम बस्तियों में

जिन के नफ़स नफ़स में तख्ऱीब६ बस रही है
ऐसे हलाकुओं का क्या काम बस्तियों में

कोई न हो शनासा कोई न जानता हो
आओ कि जा बसें हम बे-नाम बस्तियों में

सूने पड़े हैं मन्दिर, वीरान मस्जिदें हैं
धूमें मची हैं क्या क्या बदनाम बस्तियों में

सब शोरिशें हों 'रहबर` नापैद बस्तियों से
अमन-ओ-अमां का फैले पैगा़म बस्तियों में




श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Friday, July 23, 2010

कानों में गूंजती हैं सदाएं नई नई

करते रहेंगे हम भी ख़ताएं नई नई
तज्वीज़ तुम भी करना सज़ाएं नई नई

जब भी हमें मिलो ज़रा हंस कर मिला करो
देंगे फ़क़ीर तुम को दुआएं नई नई

दुन्या को हम ने गीत सुनाये हैं प्यार के
दुन्या ने हम को दी हैं सज़ाएं नई नई

ये जोगिया लिबास, ये गेसू खुले हुए
सीखीं कहां से तुम ने अदाएं नई नई

तुम आ गये बहार सी हर शय पे छा गई
मह्सूस हो रही हैं फ़ज़ाएं नई नई

आंखों में फिर रहे हैं मनाज़िर नऐ नऐ
कानों में गूंजती हैं सदाएं नई नई

गुम हो न जायें मंज़िलें गर्दो-गु़बार में
रहबर नये नये हैं दिशाएं नई नई

जब शायरी हुई है वदीअत हमें तो फिर
गज़लें जहां को क्यों न सुनाएं नई नई

'रहबर` कुदूरतों को दिलों से निकाल कर
हम बस्तियां वफ़ा की बसाएं नई नई



श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Sunday, July 18, 2010

Photos from Shiromani Sahityakaar Award function

 Photos  from Shiromani Sahityakaar Award function Chandigarh where Sh, Rehbar was awarded with Shiromani Urdu Sahityakar Award by S. Sukhbir Singh Badal Dy CM Punjab.
 (Photos By Manu Sharma)

Sh. Rehbar Recieving Award from S. Sukhbir Baadal Dy CM Punjab. in Chandigarh
with other awardees
With his wife Smt. Kailash Sharma

Saturday, July 17, 2010

जो जीने की तमन्ना है तो मर जा

सफ़र को छोड़ कश्ती से उतर जा
किसी तन्हा जज़ीरे पर ठहर जा

हथेली पर लिये सर को गुज़र जा
जो जीने की तमन्ना है तो मर जा

मुक़ाबिल से कभी हंस कर गुज़र जा
मेरे दामन को भी फूलों से भर जा

नई मंज़िल के राही, जाते जाते
सब अपने गम़ हमारे नाम कर जा

ये बस्ती है हसीनों की, यहां से
किसी आवारा बादल सा गुज़र जा

बरस जा दिल के आंगन में किसी दिन
ये धरती भी कभी सेराब कर जा

तू ख़ुशबू है तो फिर क्यों है गुरेज़ां
बिखरना ही मुक़द्दर है बिखर जा

ज़माना देखता रह जाये तुझ को
जहां में कोई ऐसा काम कर जा

इधर से आज वो गुज़रेंगे 'रहबर`
तू ख़ुशबू बन के रस्ते में बिखर जा


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Friday, July 16, 2010

मह्सूस हो रही हैं फ़ज़ाएं नई नई

करते रहेंगे हम भी ख़ताएं नई नई
तज्वीज़ तुम भी करना सज़ाएं नई नई

जब भी हमें मिलो ज़रा हंस कर मिला करो
देंगे फ़क़ीर तुम को दुआएं नई नई

दुन्या को हम ने गीत सुनाये हैं प्यार के
दुन्या ने हम को दी हैं सज़ाएं नई नई

ये जोगिया लिबास, ये गेसू खुले हुए
सीखीं कहां से तुम ने अदाएं नई नई

तुम आ गये बहार सी हर शय पे छा गई
मह्सूस हो रही हैं फ़ज़ाएं नई नई

आंखों में फिर रहे हैं मनाज़िर नऐ नऐ
कानों में गूंजती हैं सदाएं नई नई

गुम हो न जायें मंज़िलें गर्दो-गु़बार में
रहबर नये नये हैं दिशाएं नई नई

जब शायरी हुई है वदीअत हमें तो फिर
गज़लें जहां को क्यों न सुनाएं नई नई

'रहबर` कुदूरतों को दिलों से निकाल कर
हम बस्तियां वफ़ा की बसाएं नई नई



श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Saturday, July 10, 2010

ऐ दोस्त फिर मिलेंगे अगर ज़िंदगी रही

क्या क्या सवाल मेरी नज़र पूछती रही
लेकिन वो आंख थी कि बराबर झुकी रही

मेले में ये निगाह तुझे ढूँढ़ती रही
हर महजबीं से तेरा पता पूछती रही

जाते हैं नामुराद तेरे आस्तां से हम
ऐ दोस्त फिर मिलेंगे अगर ज़िंदगी रही

आंखों में तेरे हुस्न के जल्वे बसे रहे
दिल में तेरे ख़याल की बस्ती बसी रही

इक हश्र था कि दिल में मुसलसल बपा रहा
इक आग थी कि दिल में बराबर लगी रही

मैं था, किसी की याद थी, जामे-शराब था
ये वो निशस्त थी जो सहर तक जमी रही

शामे-विदा-ए-दोस्त का आलम न पूछिये
दिल रो रहा था लब९ पे हंसी खेलती रही

खुल कर मिला न जाम ही उस ने कोई लिया
'रहबर` मेरे ख़ुलूस में शायद कमी रही



श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Sunday, July 4, 2010

किस ने दिल के मिज़ाज को जाना

बे-सबब ही उदास हो जाना
किस ने दिल के मिज़ाज को जाना

वो मिरा ढूंढना तुझे हर सू
वो तिरा इस जहां में खो जाना

आंसुओं एक दिन रवां हो कर
आसियों के गुनाह धो जाना

अह्दे-हाज़िर के नेक इन्सानों
बीज तुम नेकियों के बो जाना

गम़ की फुंकारती हुई नागिन
एक शब मेरे साथ सो जाना

आ के ऐ यादेऱ्यार निश्तर सा
रगे-एहसास में चुभो जाना

हम को आता है ये भी फ़न 'रहबर`
ख़ार से भी लिपट के सो जाना



श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Saturday, July 3, 2010

जो जीने की तमन्ना है तो मर जा

सफ़र को छोड़ कश्ती से उतर जा
किसी तन्हा जज़ीरे पर ठहर जा

हथेली पर लिये सर को गुज़र जा
जो जीने की तमन्ना है तो मर जा

मुक़ाबिल से कभी हंस कर गुज़र जा
मेरे दामन को भी फूलों से भर जा

नई मंज़िल के राही, जाते जाते
सब अपने गम़ हमारे नाम कर जा

ये बस्ती है हसीनों की, यहां से
किसी आवारा बादल सा गुज़र जा

बरस जा दिल के आंगन में किसी दिन
ये धरती भी कभी सेराब१ कर जा

तू ख़ुशबू है तो फिर क्यों है गुरेज़ां२
बिखरना ही मुक़द्दर है बिखर जा

ज़माना देखता रह जाये तुझ को
जहां में कोई ऐसा काम कर जा

इधर से आज वो गुज़रेंगे 'रहबर`
तू ख़ुशबू बन के रस्ते में बिखर जा



श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Friday, July 2, 2010

फिर ढोलक पर थाप पड़ी है

शाम कठिन है रात कड़ी है
आओ कि ये आने की घड़ी है

वो है अपने हुस्न में यकता
देख कहां तक्द़ीर लड़ी है

मैं तुम को ही सोच रहा था
आओ तुम्हारी उम्र बड़ी है

काश कुशादा दिल भी रखता
जिस घर की दह्लीज़ बड़ी है

फिर बिछड़े दो चाहने वाले
फिर ढोलक पर थाप पड़ी है

वो पहुंचा इम्दादी बन कर
जब जब हम पर भीड़ पड़ी है

शहर में है इक ऐसी हस्ती
जिस को मिरी तक्लीफ़ बड़ी है

हंस ले 'रहबर` वो आये हैं
रोने को तो उम्र पड़ी है


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Thursday, July 1, 2010

एक सच्चे गवाह बन जाओ

मर्क़जे-हर निगाह बन जाओ
दोस्तो ख़िज़्रे-राह बन जाओ

थाम लो हाथ बे सहारों का
उन की जाए-पनाह बन जाओ

जिस में आ कर मिलें सभी राहें
तुम वही शाहराह बन जाओ

झूट से तोड़ कर सभी रिश्ते
एक सच्चे गवाह बन जाओ

बे-हिसी से न वासिता रखना
आह बन जाओ वाह बन जाओ

हक़ परस्ती के, हक़ शनासी६ के
दिल से तुम खै़र-ख्व़ाह बन जाओ

सब से बढ़ कर चमक दमक रक्खो
तुम सितारों में माह बन जाओ

जो सभी दुश्मनों पे भारी पड़े
हिन्द की वो सिपाह बन जाओ

दर पे साइल२ करे जो आ के सदा
उस घड़ी बे-पनाह बन जाओ

कुछ न आये नज़र बजुज़ मह्बूब३
एक आशिक़ की चाह बन जाओ

एक दुन्या तुम्हें सलाम करे
सच की आमाजगाह४ बन जाओ


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Friday, June 25, 2010

ख़ुद बतायेगा नक्श़े-क़दम रास्ता

तय करें मिल के हम तुम ब`हम रास्ता
बढ़ के ले गा हमारे क़दम रास्ता

कौन गुज़रा है आहों में डूबा हुआ
हो गया किस के अश्कों से नम रास्ता

लम्से-अव्वल तेरे पांव का जब मिला
हो गया और भी मुहतरम रास्ता

राहे-उल्फ़त के पुर-जोश राही हैं हम
चूमता है हमारे क़दम रास्ता

ख़ुद-बख़ुद आयेंगी मंज़िलें सामने
ख़ुद बतायेगा नक्श़े-क़दम रास्ता

हम भी पहुँचें सरे-मंज़िले-सरख़ुशी
दे अगर हम को शामे-अलम रास्ता

ये सफ़र, ये हसीं शाम ये घाटियां
कितना दिलकश है पुर-पेचो-ख़म रास्ता

क्यों न 'रहबर` चलूं मंज़िलों मंज़िलों
मेरी तक्द़ीर में है रक़म रास्ता


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Thursday, June 24, 2010

'जगजीत` की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़ल हो

तुम जन्नते कश्मीर हो तुम ताज महल हो
'जगजीत` की आवाज़ में ग़ालिब की ग़ज़ल हो

हर पल जो गुज़रता है वो लाता है तिरी याद
जो साथ तुझे लाये कोई ऐसा भी पल हो

होते हैं सफल लोग मुहब्बत में हज़ारों
ऐ काश कभी अपनी मुहब्बत भी सफल हो

उलझे ही चला जाता है उस ज़ुल्फ़ की मानिन्द
ऐ उक़दा-ए-दुशवारे मुहब्बत२ कभी हल हो

लौटी है नज़र आज तो मायूस हमारी
अल्लह करे दीदार तुम्हारा हमें कल हो

मिल जाओ किसी मोड़ पे इक रोज़ अचानक
गलियों में हमारा ये भटकना भी सफल हो

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Wednesday, June 23, 2010

क्या करे एतिबार अब कोई

क्या करे एतिबार अब कोई
रूठ जाये न जाने कब कोई

वो तो ख़ुशबू का एक झोंका था
उस को लाये कहां से अब कोई

क्यों उसे हम इधर उधर ढूंढे
दिल ही में बस रहा है जब कोई

वो हसीं१ कौन था, कहां का था
पूछ लेता हसब-नसब२ कोई

प्यार से हम को कह के दीवाना
दे गया इक नया लक़ब३ कोई

आज दिन क़हक़हों में गुज़रा है
रो के काटेगा आज शब४ कोई

उस से क्या अपनी दोस्ती 'रहबर`
वो समझता है ख़ुद को रब कोई

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Saturday, June 19, 2010

'डॉलर` के लिये अपना वतन छोड़ रहा है

जो शख्स़ भी तह्जीबे-कुहन छोड़ रहा है
वो अपने बुज़ुर्गों का चलन छोड़ रहा है

अल्लाह निगहबान! मिरा लाडला बेटा
'डॉलर` के लिये अपना वतन छोड़ रहा है

शायद कि वो कांधा भी तुझे देने न पहुंचे
तू जिन के लिये अपना ये धन छोड़ रहा है

ये तर्क२ की है कौन सी मंज़िल या रब
दुन्या की हर इक चीज़ को मन छोड़ रहा है

उर्यानी का वो दौर मआज़ अल्लाह है जारी
मुर्दा भी यहां अपना कफ़न छोड़ रहा है

मीज़ाइलें, रॉकिट, कभी बौछार बमों की
क्या क्या नहीं धरती पे गगन छोड़ रहा है

आओ कि सलाम अपना गुज़ार आयें रफ़ीक़ो
इक शायरे-ख़ुश-फ़िक्र वतन छोड़ रहा है

इस्टेज के अशआर पे रखते हैं नज़र हम
हम फ़न को तो 'रहबर` हमें फ़न छोड़ रहा है


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Thursday, June 17, 2010

कौन है तेरा मीत पपीहे

यही है जग की रीत पपीहे
कौन किसी का मीत पपीहे

किस की ख़ातिर तू गाता है
ये मन मोहक गीत पपीहे

इस जंगल में कौन सुने गा
तेरा ये संगीत पपीहे

सुब्ह सवेरे छेड़ न देना
कोई विरह का गीत पपीहे

दुन्या में बस दो ही गायक
इक तू इक 'जगजीत` पपीहे

किस को बुलाता है तू निस दिन
कौन है तेरा मीत पपीहे

पी को पुकारे, पी को ढूंडे
तेरा इक इक गीत पपीहे

सब को गाना है दुन्या में
अपना अपना गीत पपीहे

कितनी सदियों से जारी है
तेरा ये संगीत पपीहे

मिल जायेगा इक दिन तुझ को
तेरा बिछड़ा मीत पपीहे

ख़त्म न होगा तेरा गाना
जायेंगे युग बीत पपीहे

गाता जा तू सांझ सवेरे
तेरी होगी जीत पपीहे

तेरी हस्ती, तेरा जीवन
एक निरंतर गीत पपीहे

'पी` की लगन में गाते जाना
होना मत भयभीत पपीहे

मिल के पुकारें पी को हम तुम
मिल कर गायें गीत पपीहे


श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Tuesday, June 15, 2010

ये रौनक़ है जहां की आरज़ी क्या

भला ऐसी भी आख़िर बेरुख़ी क्या
न देखोगे हमारी बेबसी क्या

तमाशाई हुये जाते हैं रुख्स़त
ये रौनक़ है जहां की आरज़ी क्या

नवाजेंगे तुम्हें हम मयकदे में
सुनोगे तुम हमारी शायरी क्या

जो मेला देखने आ ही गये हो
यहां से फिर गुज़रना सरसरी क्या

बहुत ऊंचा मुक़द्दर है तुम्हारा
तुम्हारे साथ है वो सुन्दरी क्या

न गुज़रोगे इधर से क्या किसी दिन
न देखोगे हमारी बेकसी क्या

थे सिक्के हम किसी बीती सदी के
नई हम को सदी पहचानती क्या

हमारी दोस्ती तो तुम ने देखी
न देखोगे हमारी दुश्मनी क्या

किसी दिन पूछ ही लूं उस से 'रहबर`
करोगे साथ मेरे दोस्ती क्या

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Sunday, June 13, 2010

क्या ग़रीबों का भी ख़ुदा है कोई

ईद का चांद हो गया है कोई
जाने किस देस जा बसा है कोई

पूछता हूं मैं सारे रस्तों से
उस के घर का भी रास्ता है कोई

एक दिन मैं ख़ुदा से पूछूं गा
क्या ग़रीबों का भी ख़ुदा है कोई

इक मुझे छोड़ के वो सब से मिला
इस से बढ़ के भी क्या सज़ा है कोई

दिल में थोड़ी सी खोट रखता है
यूं तो सोने से भी खरा है कोई

वो मुझे छोड़ दे कि मेरा रहे
हर क़दम पर ये सोचता है कोई

हाथ तुम ने जहां छुड़ाया था
आज भी उस जगह खड़ा है कोई

फिर भी पहुंचा न उस के दामन तक
ख़ाक बन बन के गो उड़ा है कोई

तुम भी अब जा के सो रहो 'रहबर`
ये न सोचो कि जागता है कोई

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Saturday, June 12, 2010

दिल जिस को ढूंडता है कहीं वो सनम मिले

दिल को जहान भर के मुहब्बत में गम़ मिले
कमबख्त़ फिर भी सोच रहा है कि कम मिले

रोई कुछ और फूट के बरसात की घटा
जब आंसुओं में डूबे हुए उस को हम मिले

कुछ वक्त़ ने भी साथ हमारा नहीं दिया
कुछ आप की नज़र के सहारे भी कम मिले

आंखें जिसे तरसती हैं आये कहीं नज़र
दिल जिस को ढूंडता है कहीं वो सनम मिले

बे-इख्त़ियार१ आंखों से आंसू छलक पड़े
कल रात अपने आप से जिस वक्त़ हम मिले

जितनी थीं मेरे वास्ते खुशियां मुझे मिलीं
जितने मेरे नसीब में लिक्खे थे ग़म मिले

फ़ाक़ों से नीम-जान, फ़सुर्दा, अलम-ज़दा१
ग़म से निढाल, हिन्द के अह्ले-क़लम२ मिले

कुछ तो पता चले कहां जाते हैं मर के लोग
कुछ तो सुरागे़-राह-रवाने-अदम३ मिले

खोया हुआ है आज भी पस्ती४ में आदमी
मिलने को उस के चांद पे नक्श़े-क़दम५ मिले

'रहबर` हम इस जनम में जिसे पा नहीं सके
शायद कि वो सनम हमें अगले जनम मिले

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Thursday, June 10, 2010

तुम्हारा हुस्न महकते गुलाब जैसा है

मेरे ख़याल सा है, मेरे ख़ाब जैसा है

तुम्हारा हुस्न महकते गुलाब जैसा है

मैं बंद आंखों से पढ़ता हूं रोज़ वो चिह्न
जो शायरी की सुहानी किताब जैसा है

नहीं है कोई ख़रीदार अपना दुनिया में
हमारा हाल भी उर्दू किताब जैसा है

ये जिस्मो-जां के घरौंदे बिगड़ने वाले हैं
वुजूद सब का यहां इक हबाब जैसा है

वो रोज़ प्यार से कहते हैं हम को दीवाना
ये लफ्ज़ अपने लिए इक ख़िताब२ जैसा है

ये पाक साफ़ भी है, और है मुक़द्दस३ भी
हमारा दिल भी तो गंगा के आब जैसा है

जो लोग रखते हैं दिल में कदूरतें अपने
उन्हें न मिलना भी कारे-सवाब४ जैसा है

तुम्हें जो सोचें तो होता है कैफ़५ सा तारी६
तुम्हारा ज़िक्र भी जामे-शराब जैसा है

किये हैं काम बहुत ज़िंदगी ने लाफ़ानी७
सफ़र हयात का गो इक हबाब जैसा है

खड़े हैं कच्चा घड़ा ले के हाथ में हम भी
नदी का ज़ोर भी 'रहबर` चिनाब जैसा है

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Wednesday, June 9, 2010

उसूल

फ़र्क है तुझ में, मुझ में बस इतना,
तू ने अपने उसूल की ख़ातिर,
सैंकड़ों दोस्त कर दिए क़ुर्बां,
और मैं! एक दोस्त की ख़ातिर,
सौ उसूलों को तोड़ देता हूं।

मेरे जितने क़हक़हे थे आंसुओं तक आ गये

फेर कर मुंह आप मेरे सामने से क्या गये

मेरे जितने क़हक़हे थे आंसुओं तक आ गये

ये इशारा है किसी आते हुये तूफ़ान का
आज वो हम को हमारे सारे ख़त लौटा गये

अब बहार आये न आये, क्या ग़रज़ इस से हमें
मुस्कुराहट से हज़ारों फूल वो बरसा गये

जा रहे थे हम तो अपनी धुन में मंज़िल की तरफ़
ले के तुम नज़रानए-दिल रास्ते में आ गये

आओ हम सब मिल के भेजें उन शहीदों पर सलाम
जो वतन के वासिते मैदान में काम आ गये

हम को भी खिलना था इक दिन बांटनी थीं ख़ुशबुयें
हम हवाए-गर्मे-दुन्या से मगर मुर्झा गये

वो समंदर था, बुझाता था वो सहराओं की प्यास
पास उस के कितने तश्ना-लब१ गये, सहरा गये

कुछ तो उन में ख़ूबियां थीं, कुछ तो उन में वस्फ़२ थे
ज़िंदगी में अपने क़द से लोग जो ऊंचा गये

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

दिल ने जिसे चाहा हो क्या उस से गिला रखना


दिल ने जिसे चाहा हो क्या उस से गिला रखना
उस के लिये होंटों पर हर वक्त़ दुआ रखना
 
जब क़िस्मतें बटती थीं ऐसा भी था मुश्किल
उस वक्त़ सनम तुझ को क़िस्मत में लिखा रखना
 
जब हम ने अज़ल ही से तय एक डगर कर ली
फिर रास आयेगा राहों को जुदा रखना
 
वो नींद के आलम से बेदार हो जायें
हौले से क़दम अपना बादे-सबा रखना
 
आयेगा कोई भंवरा रस चूसने फूलों का
तुम फूल तबस्सुम के होंटों पे खिला रखना

आयेंगे वो 'रहबर` सो जायेगी जब दुनिया
पत्तों की भी आहट पर तुम कान लगा रखना



श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Monday, June 7, 2010

जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊंगा

आइना सामने रक्खोगे तो याद आऊंगा

अपनी ज़ुल्फ़ों को सँवारोगे तो याद आऊंगा

रंग कैसा हो, ये सोचोगे तो याद आऊंगा
जब नया सूट ख़रीदोगे तो याद आऊंगा

भूल जाना मुझे आसान नहीं है इतना
जब मुझे भूलना चाहोगे तो याद आऊंगा

ध्यान हर हाल में जाये गा मिरी ही जानिब
तुम जो पूजा में भी बैठोगे तो याद आऊंगा

एक दिन भीगे थे बरसात में हम तुम दोनों
अब जो बरसात में भीगोगे तो याद आऊंगा

चांदनी रात में, फूलों की सुहानी रुत में
जब कभी सैर को निकलोगे तो याद आऊंगा

जिन में मिल जाते थे हम तुम कभी आते जाते
जब भी उन गलियों से गुज़रोगे तो याद आऊंगा

याद आऊंगा उदासी की जो रुत आयेगी
जब कोई जश्न मनाओगे तो याद आऊंगा

शैल्फ़ में रक्खी हुई अपनी किताबों में से
कोई दीवान उठाओगे तो याद आऊंगा

शम्अ की लौ पे सरे-शाम सुलगते जलते
किसी परवाने को देखोगे तो याद आऊंगा

जब किसी फूल पे ग़श२ होती हुई बुलबुल को
सह्ने-गुल्ज़ार में देखोगे तो याद आऊंगा

श्री राजेंद्र नाथ रहबर

Sunday, June 6, 2010

श्री राजेंद्र नाथ रहबर एक इंटरव्यू में


श्री राजेंद्र नाथ रहबर एक इंटरव्यू में

किस को ऐ दिल याद करे है

देखें वो कब शाद करे है
ग़म से कब आज़ाद करे है


मेरे हाल पे रोने वाले
क्यों आंसू बर्बाद करे है


कितना सच्चा प्यार था अपना
आज भी दुन्या याद करे है

हर पल आहें भरता गुज़रे
हर लम्हा फ़र्याद करे है


मिलते थे जिस पेड़ तले हम
तुम को बराबर याद करे है


किस के हिज्र में आंखें नम हैं
किस को ऐ दिल याद करे है

श्री राजेंद्र नाथ 'रहबर'